अन्तरजाल पर साहित्य प्रेमियों की विश्राम स्थली ISSN 2292-9754
मुख पृष्ठ 01.22.2016
हम दर्पण को पहनाते हैं तमगे और फिर उसमें देखते हैं अपनी छवि को ऐसे भरते हैं भूख हम अपने बनाए छद्माभिमान की