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05.03.2012 |
वरदान क्या माँगूँ |
वरदान क्या माँगूँ तुम्हें पाकर भला मैं, यह जगत नश्वर,मिटेगा है सुनिश्चित, है भरोसा देह तो यह जायेगी एक दिन, चाहता हूँ मैं बटोरूँ अक्षरों को, ज़िन्दगी कब तक भला यह साथ देगी, मन- गगन के छोर विस्तृत हो गए हैं, उस पार जब जाऊँ तो मेरे साथ हो, |
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