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10.24.2007 |
नित्य नये-नये रूपों में विपिन पंवार ’निशान’ |
मेरे हृदय में आ
नित्य नये-नये रूपों में मेरे अन्दर समा असत्य मिटाने, पाप हटाने सत्य बन के, पुण्य बन के समा बेसहारों के लिए सहारा बन के भूखों को लिए भोजन बन के प्यासों के लिए पानी बन के समा हे निर्मल, हे दयालु, हे कृपालु मेरे हृदय में आ नित्य नये-नये रूपों में मेरे अन्दर समा दुश्मनी मिटाने, नफरत हटाने दोस्त बन के, मोहब्बत बन के समा अन्धकार को मिटाने प्रकाश बन के बुराई को हटाने, अच्छाई बन के समा हे निर्मल, हे दयालु, हे कृपालु मेरे हृदय में आ नित्य नये-नये रूपों में मेरे अन्दर समा |
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