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05.16.2007 |
समय और मेरे बीच सुदर्शन रत्नाकर |
मैं
उसकी हथेलियाँ थामकर
यह एक
तकाज़ा था
धरती
और चन्द्रमा
सूर्य
चमकता रहा,
पूर्वजों के लगाए पेड़ की एक शाखा थी,
अब
मेरी शिथिल होती हथेलियों को
जिन्हें कभी मैं थामा करती थी |
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