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05.12.2011 |
मिलन श्यामल सुमन |
मिलन हुआ था जो कल सपन में क्या तुमने देखा जो मैंने देखा। तेरे सामने दफन हुआ दिल क्या तुमने देखा जो मैंने देखा।। लटों को मुख से झटक रही हो हवा के संग जो मटक रही है। हँसी से बिजली छिटक रही है क्या तुमने देखा जो मैंने देखा।। फ़लक को देखा पलक उठा के तुम्हारी सूरत की वो झलक है। झुकी नजर की छुपी चमक को क्या तुमने देखा जो मैंने देखा।। निहारता हूँ मैं खुद को जब भी तेरा ही चेहरा उभर के आता। ये आइने की खुली बग़ावत क्या तुमने देखा जो मैंने देखा।। सागर में मिलकर मिट जाना सारी नदियों की चाहत है। मिलन सुमन का तड़प भ्रमर की क्या तुमने देखा जो मैंने देखा।। |
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