अन्तरजाल पर साहित्य प्रेमियों की विश्राम स्थली ISSN 2292-9754
मुख पृष्ठ 01.31.2017
चल पड़े हम उसी सफ़र के लिये वो ही मंज़िल उसी डगर के लिये जिसके साये में मिट गई थी थकन मैं हूँ बेताब उसी शजर के लिये चंद रिश्ते दिलों के थोड़ी ख़ुशी और क्या चाहिये बसर के लिये पक के गिरने की राह देखी सदा पास पत्थर तो था समर के लिये हर जगह रोशनी हुई है मगर शब अँधेरी है खँडहर के लिये।