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06.16.2007 |
हर बार समय डॉ. राम सनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ |
हर बार समय लिख देता है
मस्तक पर अग्नि परीक्षा क्यों? क्यों अधरों पर लिख दिया तृषा इस प्राण पटल पर ‘आकर्षण’ मोती के भाग्य लिखा विंधना सीपी को सोंपा खालीपन मेघों को तड़प- तड़प गलना चातक को विकल प्रतीक्षा क्यों? ज्वारों को सौंप दिया सागर गति को सौंपा सरिता का जल यह नील गगन, नक्षत्र, धरा गृह, चंद्र, सूर्य सारे चंचल जब गति परवशता और नियति तो फिर यह विकल समीक्षा क्यों? हर बार युद्ध में खड़ा हुआ प्रश्नों के तीर सहे अर्जुन क्यों कवि के हिस्से में रहते दो आर्द्र नयन या क्रोंच मिथुन आँसू का भार कहाँ कम था फिर भी दी पावक- दीक्षा क्यों? |
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