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05.03.2012 |
शृंगार है हिन्दी रामेश्वर कम्बोज ‘हिमांशु’ |
खुसरो के हृदय का उद्गार है हिन्दी । कबीर के दोहों का संसार है हिन्दी ।। मीरा के मन की पीर बन गूँजती घर-घर । सूर के सागर - सा विस्तार है हिन्दी ।। जन-जन के मानस में, बस गई जो गहरे तक । तुलसी के 'मानस' का विस्तार है हिन्दी ।। दादू और रैदास ने गाया है झूमकर । छू गई है मन के सभी तार है हिन्दी ।। 'सत्यार्थप्रकाश' बन अँधेरा मिटा दिया । टंकारा के दयानन्द की टंकार है हिन्दी ।। गाँधी की वाणी बन भारत जगा दिया । आज़ादी के गीतों की ललकार है हिन्दी ।। 'कामायनी' का 'उर्वशी’ का रूप है इसमें । 'आँसू’ की करुण, सहज जलधार है हिन्दी ।। प्रसाद ने हिमाद्रि से ऊँचा उठा दिया। निराला की वीणा वादिनी झंकार है हिन्दी।। पीड़ित की पीर घुलकर यह 'गोदान' बन गई । भारत का है गौरव, श्रृंगार है हिन्दी ।। 'मधुशाला' की मधुरता है इसमें घुली हुई । दिनकर के 'द्वापर' की हुंकार है हिन्दी ।। भारत को समझना है तो जानिए इसको । दुनिया भर में पा रही विस्तार है हिन्दी ।। सबके दिलों को जोड़ने का काम कर रही । देश का स्वाभिमान है, आधार है हिन्दी ।। |
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