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05.03.2012 |
दो बदमाश रामेश्वर कम्बोज ‘हिमांशु’ |
दो बदमाश बड़े हैं खास दिनभर ऊधम मचाते हैं । घर की थाली और कटोरी दूर फेंक कर आते हैं । इक पलंग के नीचे छुपता इक टेबल पर चढ़ जाता है । एक खड़ा होकर खिड़की में ज़ोरों से चिल्लाता है । दूजा घर के बर्तन लेकर बिना ताल बजाता है । एक नींद में सपने देखे जगकर इक मुस्काता है । जब फ़ोन की घण्टी बजती बड़का दौड़ लगाता है छुटका छुपकर मार झपट्टा झट से फ़ोन उठाता है । ‘हलो-हलो’ जब कोई करता छुटका खिल-खिल करता है मुँह बढ़ाकर आगे बड़का फुर्र-फुर्र कर मन हरता है। घर के गहरे सन्नाटे पर विजय इन्होंने पाई है । इनके घर में आ जाने से घर में खुशबू छाई है । |
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