अन्तरजाल पर साहित्य प्रेमियों की विश्राम स्थली |
![]() |
मुख्य पृष्ठ |
01.31.2008 |
|
वन में फूले अमलतास हैं हम निर्गंध पत्र-पुष्पों को तन मन धन से रहे पूजते राजद्वार तक जो पहुँचा दे टूट गया रिश्ता अपने से दृष्टि रही जो अमृत- वर्षिणी |
अपनी प्रतिक्रिया लेखक को भेजें
![]() |