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फागुन के दिन आ गये
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कविता के रस रंग में, फागुन की सुरताल। यह फागुन छाया है, बहारें लाया है । फागुन के दिन आ गये, मन में उठे तरंग । कि बालें पक आईं, खेतों में लहरायी...... महफिल फागों की सजें, टिमकी और मृदंग । कि बसंती ऋतु छाई, सभी के मन भायी... घर घर गावें टोलियाँ, नर नारी के संग । वो कोयल कूक रही, मधुरिमा घोल रही... प्रेम रंग में डूब कर, सभी बजावें चंग । राधा किशन की जोड़ी, खेलती ब्रज में होरी... जीवन में हर रंग का, है अपना सुरताल । कि छोड़ो बैर बुराई, इसी में सबकी भलायी... अरहर झूमे खेत में, आम बना सिरमौर । गाँव की किस्मत जागी,घरों में खुशियाँ छायी.... जंगल में टेसू हॅंसे, गाँव खिली गुलनार । प्रकृति की छटा निराली, ख़ुशी से झूमे धरती ..... ईशुर फाँगें गा रहे, गाँव शहर के लोग । ये होली ऋतु आयी, सभी के मन भायी दहन करें मिल होलिका, घर- घर उड़े गुलाल । कि एकता मुसकायी, विकास की डगर दिखायी..... |