अन्तरजाल पर साहित्य प्रेमियों की विश्राम स्थली ISSN 2292-9754
मुख पृष्ठ 01.14.2016
मेरे हाथ में रस्सी पानी भूमि के पेट में गगरी डालूँ पितलिया की इस अथाह में प्यास बैठी हाड़-मांस के भीतर पाऊँ तो मुस्काऊँ न पाऊँ भी तो क्या थक जाऊँ? बिन पानी मर जाऊँ ना ना बहना फिर से कुएँ पर जा-जा कर मन भर उसे चिढ़ाऊँ।