अन्तरजाल पर साहित्य प्रेमियों की विश्राम स्थली ISSN 2292-9754
मुख पृष्ठ 12.24.2015
जब सूरज मुँह ढँककर सो जाता है जब चाँद शर्म से दुबक जाता है जब अनगिनत सितारे एक-एककर हो जाते हैं ग़ायब जागते रहते हैं सिर्फ़ जुगनू सूरज चांद सितारे भले ही न बना जा सके जुगनू तो बना ही जा सकता है