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01.29.2012 |
कैसे जानूँ अभिलाषा मन की
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कैसे जानूँ अभिलाषा मन की लंगड़ी आशा बनी हुई है काँप उठा सुन बात मरण की मंदिर मन से दूर नहीं है काँप उठा सुन बात तपन की यह काया है कोमल कलुषित भर जाती साँसें पीड़न की |