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मुख पृष्ठ 07.08.2014
इस हवा का रुख मोड़ना चाहती हूँ मैं वर्जनाएँ तोड़ना चाहती हूँ। कुत्सित इरादे से उठती जो मुझपर मैं उस आँख को फोड़ना चाहती हूँ। ज़हरीले विषधर से लिपटे जो तन पर मैं वो हाथ मरोड़ना चाहती हूँ। चीखें मेरी बेअसर होती जिनपर मैं उन बुतों को झिंझोड़ना चाहती हूँ। क्षमा त्याग मूर्ति बनाता जो मुझको वो प्रतिष्ठा का आसन मैं छोड़ना चाहती हूँ।