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12.24.2007 |
यूँ साथ चलते चलते अरविन्द चौहान |
यूँ साथ चलते चलते
न जाने कब मुड़ गए तुम आँखों को पता भी न चला न जाने कहाँ गुम हो गए तुम। नम आँखों से खोजते रहे हम साँसें रुकी हैं बस अब तो है ग़म न आए तुम न ही है अब चैन तुम्हारी यादें क्यूँ करे हमको यूँ बेचैन। क्यूँ नहीं खत्म होती है ये काली रात? कब रास्ते फिर मिलें हाथों मे हो फिर हाथ अकेले तो ना कटेगा ये सफ़र मुझे है पता कब तक भटकूँ मैं यूँ मुझे दो ये बता। मेरी गल्तियों की तुम दो ना मुझे यूँ सज़ा अपने आँसुओं के झरने से दूँगा तुमको मैं सज़ा हमारी हँसी से छलकेगा हमारा ये जहाँ तुम बिन खुशी और चैन है कहाँ। |
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