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07.03.2007 |
यूँ मिली खुशी अरविन्द चौहान |
फूलों के रंग से, सौरभ और मकरन्द से पवन की तरंग से, समीर के स्पन्द से यूँ मिली खुशी, वसुधा के इस विहंग से। भँवरे की गुँजन से, तितली की उमंग से पाखी के रंजन से, दिलों के मृदंग से यूँ मिली खुशी, वसुधा के इस संगम से। मौसम के बसंत से, महुए की सुगंध से पीत के अनंत से, बयार की गंध से यूँ मिली खुशी, वसुधा के इस आनंद से। प्रेयसी की प्रीत से, मन के मीत से वादी के संगीत से, कोयल के गीत से यूँ मिली खुशी, वसुधा की इस रीत से। |
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