ना वास्ता कोई
ना ही कोई बंधन
बीती बातों से,
फिर भी ना जाने क्यूँ
जब चलती
ये बयार फाल्गुनी,
पूनम चाँद
खिले आसमान में,
महक उठे...
अतीत की गठरी,
बह उठती...
भूली यादों की हवा,
सौंधी सी ख़ुशबू
वो पहली फुहार,
पहली होली
जो सपनों में खेली
वो एहसास
नहीं था अपना जो
ना ही पराया
दिल मानता उसे !
मासूम रिश्ता
मासूम नादानियाँ
लाल, गुलाबी
रंगों में सजी हुई
बिखेर जाती
मुस्कुराती उदासी,
रंगीन लम्हे
भर के पिचकारी
क्यूँ भिगो जाते
आँखों की सूखी क्यारी?
भूली कहानी
यादों में सराबोर
मचल जाती,
ले नमकीन स्वाद
हो के बेरंग,
ओस की बूँदें जैसे
खेलतीं होली ...
ले पहली होली की...
भीगी प्यारी फुहार...!!!