अन्तरजाल पर साहित्य प्रेमियों की विश्राम स्थली ISSN 2292-9754
मुख पृष्ठ 03.01.2016
वह मौजूद था जीवन में रिश्वत की तरह। था पर नहीं था, नहीं था पर था- विद्या, शक्ति, श्रद्धा हर रूप में, निराकार ब्रह्म कहीं के!!