अन्तरजाल पर साहित्य प्रेमियों की विश्राम स्थली |
![]() |
मुख्य पृष्ठ |
04.14.2007 |
दिशाहीन आस्था |
जाने किस दिशा में खोया ये मन.. कुछ नज़र आता नहीं.. एक अनजाना सा अहसास मीठी सी चुभन... न ही उलझी हुई न ही सुलझी हुई पर जैसे कोहरा में छिपी हुई... आँखें साफ कर कर देखना चाहूँ... खुद के ही मन में झाँकना चाहूँ.. पर कुछ भी नज़र आता नहीं... अपना आप ही जैसे गुम हुआ.. खुद को खोकर भी अनजान हूँ... किसी को पाया या खुद को खोया...? ये सोच सोच परेशान हूँ.. मेरी जीत है या कि हार.. कुछ समझ आता नहीं...! |
अपनी प्रतिक्रिया लेखक को भेजें
![]() |