• विशेषांक

    कैनेडा का हिंदी साहित्य
    कैनेडा का हिंदी साहित्य कैनेडा का नाम भारत में और विशेष रूप से पंजाब प्रांत में बहुत आत्मीयता से लिया जाता है।.. आगे पढ़ें
उसका क्या
कवि, स्वर, चित्र और निर्माण: अमिताभ वर्मा - उसका क्या

साहित्य कुञ्ज के इस अंक में

कहानियाँ

अंबर की नीलिमा

  दूर-दूर जहाँ तक दृष्टि जा सकती थी, बर्फ़ की श्वेत चादर बिछी हुई थी। हिमाच्छादित देवदार के वृक्ष शान्ति-दूतों की तरह निस्तब्ध खड़े थे। मेघदूतों की सेना को चीर सूर्य की चंद किरणें जब हिम से ढके पर्वत शिखरों आगे पढ़ें


ईंधन की कोठरी

  उस अनुभव के बाद ही मैंने जाना, आँख की अपेक्षा हमारे कान ज़्यादा तेज़ी दिखाते हैं। आँख से पहले कान जान लेते हैं, घटना ने अपना विस्तार किस पल अर्जित किया। किसी भी घटना को वे तात्क्षणिक नहीं समझते। आगे पढ़ें


किन्नर 

  “डूग्गू ओ डूग्गू कहाँ चला गया . . .?  “इस लड़के के पैर घर पर बिलकुल नहींं रुकते।   “पुत्तू जाकर अपने छोटे भाई डूग्गू को ढूँढ़ कर ले आ सवेरे घर से निकला था। साँझ होने को आई आगे पढ़ें


गुरु और चेला

  मूल कहानी: ला स्कोला डेला सलमांका; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो; अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द स्कूल ऑफ सलमांका);  पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; हिन्दी में अनुवाद: ‘गुरु और चेला’-सरोजिनी पाण्डेय   प्रिय पाठक, आज जो लोक कथा आगे पढ़ें


जड़ों से जुड़ना

  गाँव के छोर पर बसा था रामलाल का पुराना, पुश्तैनी घर। उसकी दीवारें भले ही चूने से पुती थीं, पर उनमें बरसों के अनुभव और परंपरा की महक बसी थी। रामलाल, जिसकी कमर अब हल्की-सी झुकने लगी थी और आगे पढ़ें


दादी

  दिसम्बर का महीना था। शाम का समय था। सूर्यास्त हो चुका था। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। घर में लोगों की भीड़ लगी हुई थी। रह-रहकर ज़ोर-ज़ोर से रोने आवाज़ आ रही थी। बरामदे में महल्ले और पड़ोस आगे पढ़ें


दाल और पास्टा

पत्ते रंग बदलने लगे थे। चीड़ के हरे पेड़ों के बीच से मेपल और कुछ अन्य झाड़ियों के पीले और सुर्ख़ लाल पत्ते झाँक रहे थे। कुछ ने मौसम को अपना लिया था और अपने सब पत्ते झाड़ वैरागी हो आगे पढ़ें


प्रकृति का सानिध्य

  परेश उकता गया था। प्रतिदिन की एक दिनचर्या। कोई फेरबदल नहीं था। वही सुबह उठना। काम पर जाने की तैयारी करना और सारा दिन जी-तोड़ मेहनत के बाद थके हारे घर लौट आना। बासी अख़बार पढ़ना। सुबह समय नहीं आगे पढ़ें


मौन की परछाइयाँ

  गर्मी की एक लंबी दोपहर थी। हवाओं में थकावट थी, जैसे वे भी जीवन की जद्दोजेहद से उकता गई हों। आकाश धूसर था और धरती धूप से झुलसी हुई। नीला खिड़की के पास बैठी थी उसकी आँखें आकाश की आगे पढ़ें


रेशमी धागे: सेवा का नया पथ

  रीता के बालों की सफ़ेदी अब चमकने लगी थी, मानो चालीस पार की धूप ने उन पर अपनी मुहर लगा दी हो। सुबह की चाय बनाते हुए, उसने अनमने ढंग से पति सुधीर को आवाज़ दी। सुधीर अख़बार में आगे पढ़ें


वाणी-वाणी का प्रभाव 

  आगामी शनिवार उनके क्लब की इस नयी आधुनिक बिल्डिंग का उद्घाटन होने वाला था।  दो सप्ताह हुए जब वहाँ के अध्यक्ष द्वारा फ़ोन पर विनम्र आवेदन करने पर सहायता करने हेतु पहुँचे पाँच-सात सदस्य उल्लासपूर्वक आज इस भव्य हॉल आगे पढ़ें


सब चुपचाप से

  पक्ष रखने के बाद वह चुपचाप पास रखी कुर्सी पर बैठ गया। उसने विचार किया कि अधिक बोलने से अब कोई लाभ नहीं था। वह अगर और कहेगा भी तो कोई उसको सच नहीं मानेगा। उल्टा उसे ही नसीहत आगे पढ़ें


हास्य/व्यंग्य

कथावाचक का मूड

   (गर्मी के इन दो-एक महीनों का ब्रितानिया वासी ही नहीं, अपितु अन्य देशों के विभिन्न वर्गों के लोग भी . . . चाहे वे यात्री हों, मित्र-सम्बंधी हों, व्यापारी या ग़ैरक़ानूनी प्रवासी . . . भरपूर आनन्द व लाभ आगे पढ़ें


कांग्रेचलेशन! भोलाराम का जीव मर गया! 

  बरसों से अपनी पेंशन लगने की फ़ाइल पर हर पुराने गए, नए आए बाबू को गर्मागर्म समोसे रख खाते देखते-देखते भोलराम का जीव थक तो गया, पर उसने फिर भी आस नहीं छोड़ी। यह अलग बात थी कि उसकी आगे पढ़ें


जाने से पहले

  पत्नीजी गर्मी की छुट्टियों में मायके जाने लगीं। साले साहब लेने आये थे और उस पर तुर्रा यह था कि चार पहिया से लेने आये थे। बरसों पहले एम्बेसडर से ब्याह कर मेरे घर आई पत्नी अब स्कार्पियो से आगे पढ़ें


ये फ़िक्रमंद लोग

  सुबह सुबह मोबाइल उठा कर जैसे ही वाट्सअप खोलिए, मैसेज की लाइन लगी होती है। जागरूक लोग, क्या कहते हैं, ब्रह्म मुहूर्त में ब्रश करना छोड़, टॉयलेट सीट पर बैठे हुए किसी ग्रुप में कोई विश्व व्यापी समस्या के आगे पढ़ें


आलेख

अमरकांत: जन्म शताब्दी वर्ष 

अमरकांत: जन्म शताब्दी वर्ष 

उत्तर प्रदेश के सबसे पूर्वी ज़िले बलिया में एक तहसील है—‘रसड़ा’। इस रसड़ा तहसील के सुपरिचित गाँव ‘नगरा’ से सटा हुआ एक छोटा-सा गाँव और है। यह गाँव है—‘भगमलपुर’। देखने में यह गाँव नगरा गाँव का टोला लगता है। भगमलपुर आगे पढ़ें


आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और गूगल के वर्तमान संदर्भ में गुरु की प्रासंगिकता

  (गुरु पूर्णिमा पर आलेख-सुशील शर्मा)    आज के डिजिटल युग में, जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और गूगल जैसे प्लैटफ़ॉर्म सूचना के अथाह सागर तक हमारी पहुँच को असीमित बना चुके हैं, “गुरु” की पारंपरिक अवधारणा पर पुनर्विचार करना आवश्यक आगे पढ़ें


गुरु दक्ष प्रजापति: सृष्टि के अनुशासन और संस्कारों के प्रतीक

  (13 जुलाई जयंती विशेष)  सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के पुत्र गुरु दक्ष प्रजापति वेदों, यज्ञों और परिवार प्रणाली के आधार स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने अनुशासन और मर्यादा को समाज में स्थापित किया, किन्तु शिव-सती प्रसंग के माध्यम से यह भी आगे पढ़ें


गुरु, गुरुडम और गुरु घंटाल

  हिंदी में कई शब्द हैं जो अपनी चमक के साथ ही अपने अर्थ भी खो चुके हैं, इनमें से एक शब्द जो सर्वाधिक घिसा गया और अर्थ से अनर्थ के पायदान पर चढ़ा, वह शब्द है, ‘गुरु’।  हमारी संस्कृति आगे पढ़ें


विवाह, विश्वासघात और हत्या: एक मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक अध्ययन

  विवाह भारतीय समाज की एक पवित्र संस्था मानी जाती है, जो प्रेम, विश्वास, और समर्पण पर आधारित होती है। लेकिन वर्तमान समय में ऐसी घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है जहाँ पत्नियाँ अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने आगे पढ़ें


शीतांशु भारद्वाज के उपन्यास साहित्य में दलित

  ‘दलित’ शब्द ‘दल’ धातु से बना है। जिसका अर्थ पिछड़ा, शोषित, रौंदा हुआ, अविकसित, अछूत आदि है। अर्थात् जिसे दबाया गया, विकसित नहीं होने दिया, परंपरा, व्यवस्था से उपेक्षित रखा, जिसका जीवन कीड़े-मकौड़े जैसे घृणित है, ऐसा मानव ‘दलित’ आगे पढ़ें


समकालीन हिंदी ग़ज़ल में विचार, संवेदना और शिल्प: रामदरश मिश्र की रचनात्मक दृष्टि

  अनेक विधाओं में सिद्धहस्त वरिष्ठ साहित्यकार रामदरश मिश्र जी ने कविता को समग्रता के साथ रचा और जिया है। उन्होंने कविता के एक रूप को मात्र कविता मानकर अपनी साहित्यिक ज़िम्मेदारियों से किनारा नहीं कर लिया, बल्कि नई कविताएँ आगे पढ़ें


सावन मनभावन: भीगते मौसम में साहित्य और संवेदना की हरियाली

  सावन केवल एक ऋतु नहीं, बल्कि भारतीय जीवन, साहित्य और संस्कृति में एक गहरी आत्मिक अनुभूति है। यह मौसम न केवल धरती को हरा करता है, बल्कि मन को भी तर करता है। लोकगीतों, झूले, तीज और कविता के आगे पढ़ें


सावन, शिव और प्रेम: भावनाओं की त्रिवेणी

  सावन का महीना भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना में एक विशेष स्थान रखता है। यह वह समय है जब धरती हरी चादर ओढ़ लेती है, आकाश सावन की फुहारों से सज उठता है और हर ओर हरियाली और शीतलता आगे पढ़ें


संस्मरण

चहल पहल का नगर न्यूयॉर्क 

चहल पहल का नगर न्यूयॉर्क 

 (Walkable City)    ऐसा नहीं कि मैं पहली बार मई 2025 में न्यूयार्क गई थी। इससे पहले भी मैं दो बार न्यूयार्क गई थी। सबसे पहले मई 1998 में अपने पति के साथ गई थी। मेरे पति के क्लासफ़ैलो न्यूजर्सी आगे पढ़ें


कविताएँ

शायरी

समाचार

साहित्य जगत - विदेश

यॉर्क, यूके में भारतीय प्रवासी समुदाय का ऐतिहासिक काव्य समारोह

यॉर्क, यूके में भारतीय प्रवासी समुदाय का ऐतिहासिक काव्य समारोह

16 May, 2025

  दिनांक: 26 अप्रैल 2025 स्थान: यॉर्क, यूनाइटेड किंगडम 26 अप्रैल 2025 को यॉर्क इंडियन कल्चरल एसोसिएशन के तत्वावधान में…

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हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा द्वारा आयोजित ‘राम तुम्हारे अनंत आयाम’ की रिपोर्ट

हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा द्वारा आयोजित ‘राम तुम्हारे अनंत..

4 May, 2025

  हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा द्वारा रामनवमी के पावन अवसर पर ‘राम तुम्हारे अनंत आयाम’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया।…

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24 वाँ अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन नेपाल

24 वाँ अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन नेपाल

6 Mar, 2025

  भाषा जितना विस्तारित, समृद्धि उतनी ही नेपाली और हिंदी की जननी एक ही संस्कृत  हिंदी को मान्यता देने से…

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साहित्य जगत - भारत

एक शाम कवियों के नाम: युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच 

एक शाम कवियों के नाम: युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच 

17 May, 2025

युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की उन्नीसवीं काव्यगोष्ठी 13 अप्रैल 2025 (रविवार) 3:30…

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साठोत्तर काव्य आंदोलन में संघर्ष मूलक काव्य की प्रवृत्तियाँ—संगोष्ठी संपन्न: युवा उत्कर्ष मंच 

साठोत्तर काव्य आंदोलन में संघर्ष मूलक काव्य की प्रवृत्तियाँ—संगोष्ठी..

5 Feb, 2025

युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की वर्चुअल अट्ठारहवीं संगोष्ठी 26 जनवरी-2025 (रविवार) 4…

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ग्रहण काल एवं अन्य कविताएँ का विमोचन संपन्न 

ग्रहण काल एवं अन्य कविताएँ का विमोचन संपन्न 

19 Jan, 2025

  उद्वेलन एवं संवेदनाओं की कविताएँ: प्रो. बी.एल. आच्छा सरल शब्दों में गहन विषयों को व्यक्त करना आसान नहीं: गोविंदराजन…

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साहित्य जगत - भारत

केरल की पाठ्यपुस्तकों में त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ सम्मिलित 

केरल की पाठ्यपुस्तकों में त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ सम्मिलित 

18 May, 2025

  साहित्यकार एवं रेलवे इंजीनियर ‘त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ केरल राज्य की विभिन्न पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी हैं। …

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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की रजत जयंती समारोह 2025

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की रजत जयंती समारोह 2025

22 Feb, 2025

हमारी संस्कृति, परंपरा और पहचान का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है मातृभाषा: प्रो. पी. राधिका   चेन्नई, 21 फरवरी, 2025।  “मातृभाषा…

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‘क से कविता’ में अतिथि कवि डॉ. विनय कुमार से संवाद संपन्न

‘क से कविता’ में अतिथि कवि डॉ. विनय कुमार से संवाद संपन्न

25 Jan, 2025

  हैदराबाद, 24 जनवरी, 2025।  मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद के दूरस्थ शिक्षा केंद्र की लाइब्रेरी में ‘क से…

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