
संपादकीय - निर्पक्ष और निरपेक्ष को समझने की जिज्ञासा
साहित्य कुञ्ज के इस अंक में
कहानियाँ
एक था जॉन स्मिथ
महेश जब ‘मोर्ग’ (शव गृह) पहुँचा तब भी हतप्रभ-सा ही था। उसने कभी सोचा नहीं था कि जॉन उसे यह बड़ी ज़िम्मेदारी वाला काम सौंप जायेगा पर जॉन ने उसे अपने जीवन के अंत की सारी कार्यवाहियों का भार आगे पढ़ें
कोई मुझे ग़ुस्सा दिला कर दिखाए
चंपक वन का राजा बब्बर शेर था। उसने पूरे जंगल में घोषणा करवा दी कि “जो मुझे ग़ुस्से दिला देगा, उसे एक साल का खाना मेरी तरफ़ से मुफ़्त मिलेगा।” इस घोषणा को सुनते ही सारे जानवरों के बीच आगे पढ़ें
कौन ठगवा नगरिया लुटल बा
आजकल ठगी करना आसान नहीं है। जब से तकनीक ख़ुद ठग बन गई और क़िस्मत पैदल चल रही तब से ठगी करना आसान नहीं। वरना पहले बड़ा आसान था, यह सोने की ईंट, चूड़ियाँ ले लो कौड़ियों के दाम। आगे पढ़ें
खट्टे मीठे रिश्ते
लवली अपनी नवनिर्मित कोठी के लॉन में बैठी हुई थी। लॉन में चारों और कुर्सियाँ बिछी हुई थीं। भीतर हॉल में अभी-अभी हवन हो कर चुका था। प्रसाद वितरण के बाद जलपान का प्रबंध था। उसके बाद भोजन परोसा आगे पढ़ें
पाँच लघु कथाएँ
(पर्यावरणीय नैतिकता और आपदाओं पर आधारित) 1. अंतिम बीज एक था गाँव जहाँ कभी हरियाली अपने चरम पर थी। नदियाँ कलकल करती बहती थीं, पेड़ फलों से लदे रहते थे। पर धीरे-धीरे लालच हावी होता गया। मनुष्यों ने अधिक आगे पढ़ें
बिना शीर्षक
अमित ने कक्षा में बैठे हुए संदीप से बड़ी विनम्रता के साथ पूछा, “ये प्रोफ़ेसर शंकधर कौन हैं?” संदीप ने बड़ी उत्सुकता के साथ कहा, “प्रोफ़ेसर साहब इस शहर के बहुत बड़े और जाने-माने अर्थशास्त्री हैं और अभी थोड़ी आगे पढ़ें
लापरवाही का ख़म्याज़ा
मैं तृतीय श्रेणी अध्यापिका के पद पर कार्यरत थी। लेकिन मैं चाहती थी कि अंग्रेज़ी विषय से स्नातक कर लूँ। जिससे द्वितीय श्रेणी पद पर मेरी पदोन्नति हो सके। इसके लिए मैंने फार्म भरा और तैयारी शुरू की। जैसे आगे पढ़ें
सयानी सरस्वती
मूल कहानी: कैटरीना ला' सेपियंट; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो; अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (कैथरीन द वाइज़); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; हिन्दी में अनुवाद: ‘सयानी सरस्वती’-सरोजिनी पाण्डेय बहुत पुरानी बात है, पालनपुर में एक बहुत धनी आगे पढ़ें
स्वयं से स्वयं तक
यह पत्र पहली बार पढ़ा था तो मन ग़ुस्से से उबलने लगा था। वह औरत सामने होती तो शायद उसे झिंझोड़ डालता, ‘बच्ची बीमार है, तो मैं क्या करूँ? मुझसे पूछती है, पापा कहाँ से लाकर दूँ? उस रनवीर आगे पढ़ें
हास्य/व्यंग्य
अप्रैल भाई आप जेब कतरे हो
अप्रैल आया नहीं कि काम याद आ जाता है। ये कामकाज़ी महीना है। इसमें बाबुओं के काम करने की रफ़्तार बढ़ जाती है। जो बाबू सालों भर कछुए की माफिक रेंगते रहते हैं अचानक से उनकी रफ़्तार घोड़े की आगे पढ़ें
इश्तिहार-ए-इश्क़
मशहूर शायर जनाब निदा फाजली साहब का एक शेर है: “कोशिश भी कर, उम्मीद भी रख, रास्ता भी चुन, फिर इसके बाद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर।” मगर विज्ञापनों की दुनिया में तो हर काम तुरत-फुरत होना चाहिये। 1. मसलन आगे पढ़ें
उधार जन्म-जन्म का बंधन है
बंधुओ! गए वे दिन जब समाज में नेकी कर कुएँ में डालने की ग़लत नसीहत दी जाती थी और चंद गधे लोग सच्ची को ऐसे थे भी जो इस कहावत को सुन इमोशनल हो, थोड़ी बहुत नेकी करने के आगे पढ़ें
एक कप चाय और सौ जज़्बात
(विश्व चाय दिवस पर एक व्यंग्य) आज विश्व चाय दिवस है। चाय, यानी वो द्रव्य जो भारतीय आत्मा में यूँ रच-बस गया है जैसे राजनीति में वादे, या फ़िल्मों में आइटम सॉन्ग। यह वह अमृत है जो हर आगे पढ़ें
डॉ. सिंघई का ‘संतुलित’ संसार
डॉ. सिंघई, अपने नाम के आगे ‘आयुर्वेद भूषण’ लगाए घूमते थे, मगर उनकी देहयष्टि देखकर कोई भी अनभिज्ञ व्यक्ति उन्हें ‘तंदुरुस्ती के दुश्मन’ का तमगा दे सकता था। पेट उनका ऐसे बाहर निकला रहता था, जैसे उन्होंने अपने आगे पढ़ें
पाक के आतंकवाद की टेढ़ी दुम: पालतू डॉगी की नाराज़गी
जब से टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर यह मुहावरा चला है कि “पाकिस्तान का आतंकवाद कुत्ते की टेढ़ी दुम जैसा है, जो बारह साल नली में डालो तो भी सीधा नहीं होता”, मेरे पालतू डॉगी ‘डोडो’ का आत्मसम्मान आगे पढ़ें
बकवास करना सीखो
अगर आप ज़रा भी चर्चा में नहीं हैं और आपके अंदर ऐसी कोई योग्यता भी नहीं है जो आपको सुर्ख़ियों में ला सके तो आप बकवास कीजिये। बकवास करने वालों का ही भविष्य उज्जवल है। जो बका—वो पका, जो आगे पढ़ें
बुढ़ापा तो बुढ़ापा है . . .
बुढ़ापा तो बुढ़ापा है, कौन जाहिल कहता है कि उमर तो बस एक नंबर है? कितना आसान हो गया है मोहम्मद रफ़ी या किशोर दा की तरह गाने का नाटक करना आजकल। मैं ही सब कुछ हूँ—गीतकार, कैमरामैन (मेरा आगे पढ़ें
वाघा का विघटन–जब शेर भी कन्फ्यूज़ हो गया
(अगर पाकिस्तान का भारत में विलय होता है तो भारत की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियाँ क्या होंगी एक व्यंग्यात्मक विश्लेषण सुशील शर्मा की क़लम से) जब भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में पराजित कर लिया और उसे भारत आगे पढ़ें
आलेख
अविचल प्रताप: भारत की आत्मचेतना के प्रहरी
(महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व का विश्लेषण करता हुआ आलेख) भारतवर्ष के इतिहास में अनेक ऐसे नायक हुए हैं जिन्होंने केवल अपने समय को ही नहीं, आने वाले युगों की चेतना को भी दिशा दी है। ऐसे ही महान आगे पढ़ें
गीता में भक्तों का वर्णन
हम सभी किसी न किसी रूप में अपने अपने इष्ट देव का सिमरन, स्मरण करते हैं। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं जो जिस रूप में मुझे भजता है वह मेरा ही भजन करता है। मैं उसे उसी रूप में आगे पढ़ें
डिजिटल युग में कविता की प्रासंगिकता और पाठक की भूमिका
–एक समसामयिक विमर्श वर्तमान समय को यदि हम “सूचना विस्फोट का युग” कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। तकनीकी क्रांति, इंटरनेट और सोशल मीडिया ने मानव जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है—संवाद, व्यवहार, संवेदना, विचार और अभिव्यक्ति आगे पढ़ें
प्रेमचंद के कथा साहित्य में दलित चेतना
हिंदी कथा साहित्य के सम्राट कहे जाने वाले मुंशी प्रेमचंद (1880–1936 ई.) ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने भारतीय समाज के हाशिए पर खड़े दलित, वंचित और शोषित वर्गों की पीड़ा को अपनी कथा की संवेदना के केंद्र में रखा। उन्होंने आगे पढ़ें
लेखक की स्वाधीनता पर राजनीति की दस्तक: यशपाल
‘यशपाल’-संस्मरण लेखक-फणीश्वरनाथ रेणु समीक्षक-शक्ति सिंह फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ हिंदी साहित्य की उन अमर विभूतियों में से हैं, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से जीवन के सहज, सामान्य लेकिन गहरे अनुभवों को बड़ी बारीक़ी से उकेरा। उनकी रचनाएँ भारतीय ग्रामीण जीवन, आगे पढ़ें
लोक आस्था का पर्व: वट सावित्री पूजन
भारतीय संस्कृति में पर्व और त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं होते, वे जीवन-दर्शन, सामाजिक अनुशासन और सांस्कृतिक उत्तराधिकार के संवाहक भी होते हैं। इन्हीं में से एक है वट सावित्री व्रत, जो विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा आगे पढ़ें
वट सावित्री व्रत: आस्था, आधुनिकता और लैंगिक समानता की कसौटी
भारतीय संस्कृति, पर्वों और परंपराओं का एक बहुरंगी ताना-बाना है। इनमें से कई परंपराएँ सदियों से चली आ रही हैं, जो आस्था, प्रेम और पारिवारिक मूल्यों का प्रतीक मानी जाती हैं। इन्हीं में से एक है वट सावित्री व्रत, आगे पढ़ें
हमारी सहयात्रा
(इक्कीस वर्षों की आत्मिक संगति पर एक आत्मकथ्य) कभी-कभी जीवन कोई बड़ी घोषणा नहीं करता। वह बस चलता है—मौन में, सहजता में, जैसे कोई पुराना राग धीरे-धीरे आत्मा में उतरता है। आज, हमारे वैवाहिक जीवन के इक्कीस वर्ष आगे पढ़ें
समीक्षा

शुभ्रा ओझा की आख़िरी चाय
समीक्षित पुस्तक: आख़िरी चाय (कहानी संग्रह) विशेष: शिवना नवलेखन पुरस्कार 2024 प्राप्त कृति लेखक: शुभ्रा ओझा प्रकाशक: शिवना प्रकाशन प्रकाशन वर्ष: 2025 पृष्ठ संख्या: 116 मूल्य: ₹250 ISBN : 978-81-980656-2-9 Amazon link: https://amzn.in/d/5w8353I कहते हैं हर लम्हा अपने में आगे पढ़ें
संस्मरण
चरण छूते आये, असलहे चमकाते चले गये!
हुआ यह कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में रिसर्च कमेटी की मीटिंग थी। उसमें सभी शिक्षक व रिसर्च के लिए उत्सुक रिसर्चर आये हुए थे। धीरे-धीरे रिसर्चर व गाइड के बीच सहमति के आधार पर रजिस्ट्रेशन होता आगे पढ़ें
जीवन संगीत—मेरी यात्रा
लगभग १९५० की बात है। भारत स्वतंत्र हो चुका था। हम लोग आगरे में रहते थे। मेरे बाबूजी मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे। शहर का माहौल मिला-जुला-सा था कहीं-कहीं कुछ दंगे आदि की ख़बर बड़ों से सुनाई पड़ आगे पढ़ें

देवेंद्र सत्यार्थी: एक बूढ़े फ़रिश्ते की यादें
अपने गुरु और लोक साहित्य के फ़क़ीर देवेंद्र सत्यार्थी जी पर कुछ लिखने का जतन बहुत दिनों से कर रहा हूँ, पर पता नहीं क्यों, शब्द साथ नहीं देते। बार-बार लगता है कि क्या मैं सचमुच लिख पाऊँगा उस आगे पढ़ें
नाटक
अधूरी पूर्णता–एक मौन प्रेमकथा
(एक संवेदनशील मंचीय नाट्य) पात्रविवरण: दीपक– एक आदर्शवादी युवक, मनोविज्ञान का छात्र और आंतरिक द्वंद्वों से जूझता हुआ। संजीवनी– कुलपति की बेटी, संवेदनशील, प्रखर और प्रेम को अपनी आत्मा की भाषा मानने वाली। प्रोफ़ेसर अत्रि– कुलपति, पिता और एक पारंपरिक आगे पढ़ें
कविताएँ
शायरी
समाचार
साहित्य जगत - विदेश

यॉर्क, यूके में भारतीय प्रवासी समुदाय का ऐतिहासिक काव्य समारोह
दिनांक: 26 अप्रैल 2025 स्थान: यॉर्क, यूनाइटेड किंगडम 26 अप्रैल 2025 को यॉर्क इंडियन कल्चरल एसोसिएशन के तत्वावधान में…
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हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा द्वारा आयोजित ‘राम तुम्हारे अनंत..
हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा द्वारा रामनवमी के पावन अवसर पर ‘राम तुम्हारे अनंत आयाम’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया।…
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24 वाँ अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन नेपाल
भाषा जितना विस्तारित, समृद्धि उतनी ही नेपाली और हिंदी की जननी एक ही संस्कृत हिंदी को मान्यता देने से…
आगे पढ़ेंसाहित्य जगत - भारत

एक शाम कवियों के नाम: युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की उन्नीसवीं काव्यगोष्ठी 13 अप्रैल 2025 (रविवार) 3:30…
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साठोत्तर काव्य आंदोलन में संघर्ष मूलक काव्य की प्रवृत्तियाँ—संगोष्ठी..
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की वर्चुअल अट्ठारहवीं संगोष्ठी 26 जनवरी-2025 (रविवार) 4…
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ग्रहण काल एवं अन्य कविताएँ का विमोचन संपन्न
उद्वेलन एवं संवेदनाओं की कविताएँ: प्रो. बी.एल. आच्छा सरल शब्दों में गहन विषयों को व्यक्त करना आसान नहीं: गोविंदराजन…
आगे पढ़ेंसाहित्य जगत - भारत

केरल की पाठ्यपुस्तकों में त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ सम्मिलित
साहित्यकार एवं रेलवे इंजीनियर ‘त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ केरल राज्य की विभिन्न पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी हैं। …
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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की रजत जयंती समारोह 2025
हमारी संस्कृति, परंपरा और पहचान का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है मातृभाषा: प्रो. पी. राधिका चेन्नई, 21 फरवरी, 2025। “मातृभाषा…
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‘क से कविता’ में अतिथि कवि डॉ. विनय कुमार से संवाद संपन्न
हैदराबाद, 24 जनवरी, 2025। मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद के दूरस्थ शिक्षा केंद्र की लाइब्रेरी में ‘क से…
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